सांठगांठ से हो रहे खातेदारी जमीन पर ही खान एग्रीमेंट
बिजौलिया (जगदीश सोनी)। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई एक जानकारी के तहत एक बड़ा मामले सामने आया है, जिसमें अनपढ़ दलितों की सेंडस्टोन के रूप में सोना उगलने वाली करोड़ों की बेशकीमती जमीनों को क्षेत्र के भू-माफियाओं द्वारा कौड़ियों मे खरीदने व फर्जी तरीके से हथियाकर खनिज विभाग के अधिकारियों व ग्रामदानी कारिंदों की मिलीभगत से, उच्चतम न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए खातेदारी भूमि में खान एग्रीमेण्ट करने के चौंकाने वाले भ्रष्ट कारनामों का खुलासा हुआ है।
अजमेर संभाग के भीलवाड़ा जिले में बिजौलिया उपखण्ड के ग्रामदानी गांव काटबड़ा के अनपढ़-गरीब भील जाति के लोग करोड़ों की जमीनों के मालिक होते हुए भी एक ओर जहां फटेहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी ओर इनकी जमीनों को हथियाकर भू-माफिया व सरकारी-ग्रामदानी कारिंदे करोड़पति होते जा रहे हैं। इस कारनामे में ग्रामदान बोर्ड जयपुर के अधिकारी भी बराबर के भागीदार है। यहां की 25 बीघा खातेदारी भूमि के एक एग्रीमेण्ट की बाजार कीमत लगभग 7-10 करोड़ रूपए तक आंकी जाती है।
आरटीआई कार्यकर्ता सुधीर कोतवाल द्वारा खनिज विभाग से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में खातेदारी भूमि में एग्रीमेण्ट के दौरान बड़े पैमाने पर अनियमितताएं व भ्रष्टाचार साफ दिखाई देता है। खनिज विभाग द्वारा ग्रामदानी गांव काटबड़ा में नरेश पिता भवानी लाल धाकड़ के नाम पर (क्वारी लाईसेंस नं. 11/ 2011) 25 बीघा खातेदारी भूमि में किए गए इस एग्रीमेण्ट में खनिज विभाग व ग्रामदानी पटवारी द्वारा उच्चतम न्यायालय के उस आदेश की जम कर धज्जियां उड़ाई गई है, जिसमें इस तरह के एग्रीमेण्ट क्षेत्र का नदी, नाला, आबादी, विद्यालय, सड़क व हाईटेंशन लाइनों से 45 मीटर दूर होना आवश्यक होता है।
क्वारी लाइसेंस नं. 11 /2011 के एग्रीमेण्ट क्षेत्र के आराजी नं. 35,101,99/1,26/1 व 96/1 ऐरू नदी से लगते हुए हैं। ऐरू नदी का खसरा संख्या 36 रकबा 8.14 बीघा है, जो गांव के नक्शे व जमाबंदी में भी दर्ज है। इसके बावजूद भी खनिज विभाग व ग्रामदानी पटवारी की संयुक्त सर्वे रिपोर्ट में दिए गए नक्शे में इन आराजियात को एग्रीमेण्ट क्षेत्र से 45 मीटर दूर दर्शाते हुए एग्रीमेण्ट कर दिया गया।
मूल नक्शे व सर्वे रिपोर्ट के नक्शे को देखने से यह गड़बड़झाला साफ दिखाई देता है कि ऐरू नदी इस एग्रीमेण्ट के बिल्कुल पास से गुजर रही है जबकि उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार यह कम से कम 45 मीटर दूर होना चाहिए। यही नहीं, इस खनन स्वीकृती में आराजी नं. 26/1 व 100 में स्थित नाले को भी गायब कर दिया गया है। जबकि पुराने रिकॉर्ड व मूल नक्शे में नाले को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है।
गौरतलब है कि उच्च न्यायालय जोधपुर द्वारा एक जनहित याचिका पर दिए गए फैसले में ऐरू नदी में किए जा रहे अवैध खनन से नदी के बिगड़ते स्वरूप पर चिंता जाहिर करते हुए इसके संरक्षण के लिए विशेष आदेश जारी किए गए हैं।
नियमों से खिलवाड़ कर किए गए इस एग्रीमेण्ट में ढ़ेरों अनियमितताएं आईने की तरह साफ दिखाई देती है। काटबड़ा गांव की ग्रामसभा द्वारा दिया गया अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी मिलीभगत से जारी किया गया नजर आता है। इसमें सभी ग्रामदानी सदस्यों के हस्ताक्षर नहीं होकर सिर्फ पटवारी व अध्यक्ष के ही हस्ताक्षर हैं और क्वारी लाईसेंस धारक ग्रामदानी गांव काटबड़ा का सदस्य भी नहीं है।
नियम के मुताबिक किसी भी खातेदारी एग्रीमेण्ट में पक्के पिलर लगाया जाना जरूरी होता है। परंतु कहीं पर भी सीमा स्तंभ व स्थाई स्तंभ नहीं लगाए गए हैं। खनिज अभियंता द्वारा जारी की गई ‘पिलर वेरीफिकेशन रिपोर्ट’ देखने से भी फजीर्वाड़ा साफ नजर आता है कि यह रिपोर्ट मौके पर जाकर नहीं, बल्कि कार्यालय में ही बैठ ‘टेबल डिमार्केशन’ कर बनाई गई है। खातेदारी एग्रीमेण्ट में नियमानुसार आवेदन प्राप्त होने के बाद आवेदक के नाम खनिज विभाग की ओर से सेंक्शन लैटर जारी किया जाता है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया।
इस एग्रीमेण्ट में ईको फ्रैण्डली माईनिंग प्लान व एमएमसीआर 1986 के नियमों की भी पूर्ण रूप से अवहेलना की गई है। साथ ही खननकर्ता जोधपुर हाईकोर्ट के आदेशों की परवाह किए बिना, खनन कार्य का मलबा ऐरू नदी में डालकर नदी के स्वरूप को नष्ट करने पर आमादा है।
इसी प्रकार की अनियमितताएं व भ्रष्टाचार कमलेश पिता छीतर धाकड़ निवासी बृजपुरा के नाम पर किए गए एक अन्य एग्रीमेण्ट मे भी सामने आई है। इसमें भी आराजी 41/2, 41/4 ऐरू नदी के एकदम समीप है एवं आराजी 41/1, 41/3, 43, 44 व 449 आम रास्ता है तथा आराजी 250 में श्मशान स्थित है। आराजी 52,53,54,55,56,57,58 पुराने रिकॉर्ड में गांवाई बाड़ों के रूप में दर्ज है, जिनको खातेदारी में लेकर एग्रीमेण्ट कर दिया गया। वहीं आराजी नं. 94/4 में एनीकट बना हुआ है। वहीं काटबड़ा गांव की आबादी भी बिल्कुल समीप है, जिससे खनन कार्य में किए जाने वाली ब्लास्टिंग की वजह से यहां कभी भी जान-माल का नुकसान हो सकता है।
ये तो खातेदारी एग्रीमेण्ट में भ्रष्टाचार की बानगी मात्र है। यदि अब तक हुए एग्रीमेण्टों की गहराई व ईमानदारी से जांच की जाए तो ऐसे कई मामले सामने आ सकते हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को दरकिनार कर सिंचित भूमि को असिंचित व बंजड़ बताकर, हाईटेंशन लाइनों के पास तथा सिंचाई व राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज सिंचाई नहरों को नजरअंदाज कर एग्रीमेण्ट किए गए हैं। ऐसी जगहों पर खननकर्ताओं द्वारा नहरों को तोड़कर खनन कार्य किया जाना वर्षों से बदस्तूर जारी है।
बहरहाल, ऐसे में भ्रष्टाचार के खात्मे के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें वाले राजनेताओं, सरकारी कारिंदों व भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्य रही सरकारी-गैरसरकारी संस्थाओं के दावे खोखले साबित हो रहे हैं, जिनमें भ्रष्टाचार और भ्रष्टचारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने की बातें की जाती है।
अजमेर संभाग के भीलवाड़ा जिले में बिजौलिया उपखण्ड के ग्रामदानी गांव काटबड़ा के अनपढ़-गरीब भील जाति के लोग करोड़ों की जमीनों के मालिक होते हुए भी एक ओर जहां फटेहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी ओर इनकी जमीनों को हथियाकर भू-माफिया व सरकारी-ग्रामदानी कारिंदे करोड़पति होते जा रहे हैं। इस कारनामे में ग्रामदान बोर्ड जयपुर के अधिकारी भी बराबर के भागीदार है। यहां की 25 बीघा खातेदारी भूमि के एक एग्रीमेण्ट की बाजार कीमत लगभग 7-10 करोड़ रूपए तक आंकी जाती है।
आरटीआई कार्यकर्ता सुधीर कोतवाल द्वारा खनिज विभाग से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में खातेदारी भूमि में एग्रीमेण्ट के दौरान बड़े पैमाने पर अनियमितताएं व भ्रष्टाचार साफ दिखाई देता है। खनिज विभाग द्वारा ग्रामदानी गांव काटबड़ा में नरेश पिता भवानी लाल धाकड़ के नाम पर (क्वारी लाईसेंस नं. 11/ 2011) 25 बीघा खातेदारी भूमि में किए गए इस एग्रीमेण्ट में खनिज विभाग व ग्रामदानी पटवारी द्वारा उच्चतम न्यायालय के उस आदेश की जम कर धज्जियां उड़ाई गई है, जिसमें इस तरह के एग्रीमेण्ट क्षेत्र का नदी, नाला, आबादी, विद्यालय, सड़क व हाईटेंशन लाइनों से 45 मीटर दूर होना आवश्यक होता है।
क्वारी लाइसेंस नं. 11 /2011 के एग्रीमेण्ट क्षेत्र के आराजी नं. 35,101,99/1,26/1 व 96/1 ऐरू नदी से लगते हुए हैं। ऐरू नदी का खसरा संख्या 36 रकबा 8.14 बीघा है, जो गांव के नक्शे व जमाबंदी में भी दर्ज है। इसके बावजूद भी खनिज विभाग व ग्रामदानी पटवारी की संयुक्त सर्वे रिपोर्ट में दिए गए नक्शे में इन आराजियात को एग्रीमेण्ट क्षेत्र से 45 मीटर दूर दर्शाते हुए एग्रीमेण्ट कर दिया गया।
मूल नक्शे व सर्वे रिपोर्ट के नक्शे को देखने से यह गड़बड़झाला साफ दिखाई देता है कि ऐरू नदी इस एग्रीमेण्ट के बिल्कुल पास से गुजर रही है जबकि उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार यह कम से कम 45 मीटर दूर होना चाहिए। यही नहीं, इस खनन स्वीकृती में आराजी नं. 26/1 व 100 में स्थित नाले को भी गायब कर दिया गया है। जबकि पुराने रिकॉर्ड व मूल नक्शे में नाले को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है।
गौरतलब है कि उच्च न्यायालय जोधपुर द्वारा एक जनहित याचिका पर दिए गए फैसले में ऐरू नदी में किए जा रहे अवैध खनन से नदी के बिगड़ते स्वरूप पर चिंता जाहिर करते हुए इसके संरक्षण के लिए विशेष आदेश जारी किए गए हैं।
नियमों से खिलवाड़ कर किए गए इस एग्रीमेण्ट में ढ़ेरों अनियमितताएं आईने की तरह साफ दिखाई देती है। काटबड़ा गांव की ग्रामसभा द्वारा दिया गया अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी मिलीभगत से जारी किया गया नजर आता है। इसमें सभी ग्रामदानी सदस्यों के हस्ताक्षर नहीं होकर सिर्फ पटवारी व अध्यक्ष के ही हस्ताक्षर हैं और क्वारी लाईसेंस धारक ग्रामदानी गांव काटबड़ा का सदस्य भी नहीं है।
नियम के मुताबिक किसी भी खातेदारी एग्रीमेण्ट में पक्के पिलर लगाया जाना जरूरी होता है। परंतु कहीं पर भी सीमा स्तंभ व स्थाई स्तंभ नहीं लगाए गए हैं। खनिज अभियंता द्वारा जारी की गई ‘पिलर वेरीफिकेशन रिपोर्ट’ देखने से भी फजीर्वाड़ा साफ नजर आता है कि यह रिपोर्ट मौके पर जाकर नहीं, बल्कि कार्यालय में ही बैठ ‘टेबल डिमार्केशन’ कर बनाई गई है। खातेदारी एग्रीमेण्ट में नियमानुसार आवेदन प्राप्त होने के बाद आवेदक के नाम खनिज विभाग की ओर से सेंक्शन लैटर जारी किया जाता है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया।
इस एग्रीमेण्ट में ईको फ्रैण्डली माईनिंग प्लान व एमएमसीआर 1986 के नियमों की भी पूर्ण रूप से अवहेलना की गई है। साथ ही खननकर्ता जोधपुर हाईकोर्ट के आदेशों की परवाह किए बिना, खनन कार्य का मलबा ऐरू नदी में डालकर नदी के स्वरूप को नष्ट करने पर आमादा है।
इसी प्रकार की अनियमितताएं व भ्रष्टाचार कमलेश पिता छीतर धाकड़ निवासी बृजपुरा के नाम पर किए गए एक अन्य एग्रीमेण्ट मे भी सामने आई है। इसमें भी आराजी 41/2, 41/4 ऐरू नदी के एकदम समीप है एवं आराजी 41/1, 41/3, 43, 44 व 449 आम रास्ता है तथा आराजी 250 में श्मशान स्थित है। आराजी 52,53,54,55,56,57,58 पुराने रिकॉर्ड में गांवाई बाड़ों के रूप में दर्ज है, जिनको खातेदारी में लेकर एग्रीमेण्ट कर दिया गया। वहीं आराजी नं. 94/4 में एनीकट बना हुआ है। वहीं काटबड़ा गांव की आबादी भी बिल्कुल समीप है, जिससे खनन कार्य में किए जाने वाली ब्लास्टिंग की वजह से यहां कभी भी जान-माल का नुकसान हो सकता है।
ये तो खातेदारी एग्रीमेण्ट में भ्रष्टाचार की बानगी मात्र है। यदि अब तक हुए एग्रीमेण्टों की गहराई व ईमानदारी से जांच की जाए तो ऐसे कई मामले सामने आ सकते हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को दरकिनार कर सिंचित भूमि को असिंचित व बंजड़ बताकर, हाईटेंशन लाइनों के पास तथा सिंचाई व राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज सिंचाई नहरों को नजरअंदाज कर एग्रीमेण्ट किए गए हैं। ऐसी जगहों पर खननकर्ताओं द्वारा नहरों को तोड़कर खनन कार्य किया जाना वर्षों से बदस्तूर जारी है।
बहरहाल, ऐसे में भ्रष्टाचार के खात्मे के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें वाले राजनेताओं, सरकारी कारिंदों व भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्य रही सरकारी-गैरसरकारी संस्थाओं के दावे खोखले साबित हो रहे हैं, जिनमें भ्रष्टाचार और भ्रष्टचारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने की बातें की जाती है।